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Friday, April 27, 2012



कहानी वैसे आगे भी है लेकिन मेरी परिचर्चा का विषय कुछ और है

राजा परीक्षित ने जिस तरह कलयुग को पूरी पृथ्वी पर साम्राज्य बनाए से रोक दिया इस कारन से आज के इस युग मै भी लोगो के बीच से आस्था ,श्रद्धा ,विश्वास ख़तम नहीं हुआ । शायद ये भी एक कारण हो सकता है नस्त्रदामस और मायअन अभी तक गलत साबित हुए । परन्तु आप इस पर ध्यान दीजिये -
१. दारू और धुम्रपान करने वालो का समाजिक दायरा बहुत बड़ा होता है।७०% से ज्यादा  अपराध इसी के सानिध्य मै होते है ।
२. हिंसा से बहुत हद तक सरे कम किये जासकते है
३. किसी भी देश की आर्थिक स्तिथि उसके पास जमा सोने से होती है
४. "सोना सगा सिर्फ सुनार का " पुराणी कहावत है परन्तु फिर भी लोग सोने की चमक के आगे चुन्धियाजाते  है ।
५. विवाहेतर "extra marital " सम्बन्धो की भरमार है उसका कारण चाहे जो भी हो ।
६.सरे काले धन की वजह उन्ही चारो मै से होती है । रजोगुण का मतलब होता है  इर्षा, दुएष इत्यादि ।


शायद  ये ही कारण है के आज जिसके पास पैसा है वो ही सिकंदर है, लॉस वेगास औए सिंगापूर के casinos के बारे मै भूल ही गया ।
 खैर दुनिया मै बहुत बुरा है -- बहुत कुछ अनिमियित है फिर भी आपको ऐसे दोस्त मिल्जाते है जो आपके सुख दुःख मै हमेशा साथ होँगे और सदैव अपना आशीर्वाद और प्यार देने वाले आपके माता पिता । किसी न किसी  रूप मै भगवान् आपको अपने होने का एसास  करता रहेगा ।
और जब तक हमे उस सर्वशक्तिमान का आभास रहेगा, हम कर्म,प्रेम,सद्भाव,सेवा,त्याग और आराधना से मिलाप करते रहेंगे और तब तक कलयुग पूरी तरह से धरती पर  राज्य नहीं कर पायेगा । और महाप्रलय या doomsday तब तक थो नहीं आ पायेगा ।   

बस बहुत हुआ कहानी शुरू करते है 


कहा जाता है महाभारत के युद्ध के बाद  पांडव अपना सारा राज्य त्याग कर सन्यासी बन गए । पांडव अपने पौत्र  अभिमन्यु के  पुत्र परीक्षित का राजयाभिशेक  किया और हिमालय की ओर प्रस्थान किया । रजा परीक्षित अत्यंत पराक्रमी थे । स्वयं भगवान विष्णु  ने जिनकी रक्षा करी हो ब्रहमास्त्र से भला  वो बालक तेजस्वी  ओर पराक्रमी नहीं होगा ये असंभव है ।


कहा जाता है के महाभारत के युद्ध के पश्चात् ही त्रेता युग समाप्त हुआ ओर कलयुग के अपने की घोषणा हुई । वो ही कलियुग "जिसमे हंस चुगेगा दाना तिनका ओर कावा मोती खायेगा"। कलयुग जिसमे धरती पैर पाप ही पाप होगा इसके बारे मे आप सबके पास भरपूर जानकारी है ,अतएव हम आगे बढ़ते है ।
हुआ कुछ ऐसे के कलयुग ने अपना धरती पैर पदार्पण किया परन्तु रजा परीक्षित ने उसे आने नहीं दिया । उन्होंने कहा मेरे जीते जी अधर्म, नीचता,पाप जैसी नीच प्रवर्तियो को वो मानव समाज पैर हावी नहीं होने देंगे । कलयुग मे इतना सहस नहीं था के वो राजा परीक्षित से जीत सके ।
कलयुग को थो आना था...ओर धरती पर आना था ओर होनी का लिखा कुन ताल सकता है ।परन्तु राजा परीक्षित पराक्रमी थे इस होनी को उन्होंने रोके रखा । ओर बेचारे कलयुग को शून्य मे भटकना पड़ा क्युकी बाकी सरे लोक मे जाना उसकी सीमओं से परे था । 
अब कलयुग भी कलयुग था चतुर और वाचाल । एक बार फिर धरती पर गया और राजा परीक्षित के सामने एक याचक के तरह गया और बोला :"हे राजन ये कैसा न्याय है मेरा जनम इस धरती के लिए हुआ और आप मुझे ईसे वंचित कर रहे है। ये अन्याय है धरती के लिए जन्म हुआ है मेरा थो मै भी आपकी प्रजा हुआ । और आप अपनी ही प्रजा को धरती पर रहेने की जगह नहीं दे सकते । मै कबसे शुन्य मै भटक रहा हु ,हे राजन मै एक याचक बन करा आया हु, और धरती पर न्याय समाप्त नहीं हुआ है । अत: आपको न्याय कारन होगा एक बेघर को क्या आप इतनी धरती पर कोई स्थान नहीं दे सकते । मै थो होनी हु..मुझे यहाँ से निकल कर या बिना न्याय के साथ भेजे जाने से भी अधरम और पाप बढेगा।क्युकी "यथा राजा तथा प्रजा " .
राजा परीक्षित अब धरम संकट मै फस गए  और कहा " न्याय अभी समाप्त नहीं हुआ है ,और तुमने पांडव वंशी राजा से याचना की है । तुम्हारी प्राथना जरुर सुनेगे और तुम्हे रहेने का स्थान भी  अवश्य देंगे  । तुम धरती पर चार स्थान पर निवास कर सकते हो 
१. जहा जुआ खेला जाता हो
२. जहा मदिरा पान होता हो
३. जहा परस्त्रीसंग हो
४. जहा हिंसा होती हो
इस पर कलयुग बोला- "ये स्थान बहुत सिमित है मुझे कोई और स्थान भी प्रदान करे"। इस पर राजा बोले - " अच्छी बात है क्युकी धन मै रजोगुण का वास होता है इसीलिए तुम सोने मै भी रहेसकते हो" ।
फिर क्या था कलयुग ने अपना रंग दिखाया सीधा राजा के सोने के मुक्त मै जाकर बैठ गया । फिर राजा से एक ध्यान मै मगन मह्रिषी का अपमान करवा दिया । जिसकी वजह से मह्रिषी के पुत्र ने राजा को श्राप दिया के अब से सात दिन बाद राजा की मृत्यु हो जाए । और जब मह्रिषी धयान से बहार आये और जब सारा घटना क्रम उन्हें पता चला थो उहोने अपने बेटे से कहा के उसने घोर अनर्थ कर दिया , बिना जाने समझे उसने एक महँ आत्मा को श्राप दिया है । फिर उन्होने ये सांकल किया के के आने वाले युग मै कभी किसी काछी उम्र वाले को कोई भी शक्ति या जिम्मेदारी नहीं दिजाएगी ।

एक और कहानी मिली !!!
 काफी रोचक लगी मुझे इसलिए सोचा क्युन न एक बार फिर से लोगो को परेशान किया जाए ।
वैसे मानव प्रवर्ती "सापेक्षता सिद्धांत" अर्थार्त "Theory of Relativity " पैर निर्भर करती है अपने दर्शनशास्त्र को दरकिनार करते हुए आगे बढ़ते है ......
कहानी से पहेले  आप नास्त्रोदोमस की भविष्यवाणियो के बारे मई सोचे ,माया सभ्यता मई उबलब्ध उस प्रलय के जिकर को याद करिए, या रोमांचित और रोंगटे खड़े करदेने वाली २०१२ चलचित्र के बारे मे  सोचे। आखिर ये सब मीडिया  की व्यापारात्मक सोच का नतीजा है ,या सच मई कोई रहस्य छुपा है जो इंसान को दिखाई  नहीं दे रहा है !...
खैर ये तो प्रष्टभूमि थी शायद आपको मेरी कहानी मई कुछ रोमांच मिलजाए - परन्तु ये कहानी मैंने नहीं लिखी है काफी पुराणी को मुझे किसिने सुनायी जब कुछ - ज्ञानी -पंडित -बुद्धिजीवी और कुछ कुशल मित्रो की महेफिल जमती है थो कुछ ऐसी ही किस्से कहानी मिलते है ....

kuch purani yaade hai....POINTS 09 ki 1 saal pure hone ki party ki

Monday, March 19, 2012

कहानी  के पत्रों के नाम मै अपने अनुसार दे रहा हु ये असल कहानी से अलग है..क्युकी मुझे याद नहीं नाम...इसके लिए शमा प्रार्थी हु।
         
             दो राज्य थे रूपनगर और शक्तिनगर, दोनों राज्यों मै सम्बन्ध अच्छे नहीं थे । रूपनगर के राजा थे महाराज शिरोमणि, महारानी मल्लिका देवी और राजकुमारी कुसुमवती । दूसरी और शक्तिनगर का राजा था महाराज गजेन्द्र और उनका राजकुमार देवेन्द्र । खानदानी शत्रुता के कारण दोनों राज्यों के बीच मै कभी सन्धि न हो सकी और युद्ध की स्थिति हमेशा बनी रहेती थी ।
             फिर एक दिन राजा गजेन्द्र और उनके बेटे ने रूपनगर पैर धावा बोल दिया। परिणाम स्वरुप महाराज शिरोमणि वीरिगति को प्राप्त हुए। उनकी पत्नी और बेटी राज्य छोड़ कर भाग निकले! परन्तु गजेन्द्र और देवेन्द्र दोनों ही अभिमानी और विलासी होने के कारण रूपनगर की रानी और राजकुमारी दोनों को खोजने लगे। क्युकी दोनों ही अप्सरा जैसी थी ।
              वो दौड़ते हुए मरुस्थल मै जा पहुची और उनका पीछा करते हुए शक्तिनगर के राजा और राजकुमार।बाप-बेटे ने माँ-बेटी के पैरो के निशान देख कर जो अलग अलग दिशा मे जा रहे थे। उनको  यकीन था  के मरुस्थल मै वो ज्यादा दूर तक नहीं जा पएंगी। राजा गजेन्द्र ने कहा - " पुत्र अब हमने अलग अलग करके दोनों को खोजना है एक पदचिन्हों की ओर हम जायेंगे  और दुसरे  की तरफ तुम। जिसके  पदचिन्हों का पीछा मै करूँगा उससे विवाह भी मै करूँगा। जिसके पदचिन्हों का तुम पीच अक्रोगे उससे तुम विवाह  करोगे" । राजा को यकीन था के वो रानी रूपवती के पायेंग और राजकुमार कुसुमवती । परन्तु हुआ इसके विपरीत राजा को मिली राजकुमारी और राजकुमार को मिली रानी । 

              इस प्रकार राजा  देवेन्द्र  की पत्नी हुई कुसुमवती और राजकुमार की पत्नी बनी मल्लिका देवी । नीति का विचित्र रूप देख  कर हर कोई चकित था । इस पैर बेताल ने सवाल किया बता विक्रम पिता और पुत्र मै कौनसा नया रिश्ता बना ?           
               तो इस बार बेताल वापिस नहीं जा पाया । बेताल ने फिर सारा रहस्य बताया के तांत्रिक जिसने विक्रम से बेताल को लाने के लिए कहा ,विक्रम और बेताल तीनो ही एक ही नक्षत्र  मै  जन्मे है । परन्तु पूर्व जन्म के कर्मो के नीच कर्मो के कारण बेताल एक प्रेत बना वही श्रेष्ट कर्म होने के कारण विक्रम चक्रवर्ती सम्राट बना सिर्फ आचे कर्म होने के कारण तांत्रिक बना। तांत्रिक के पता चला के उसके भाग्य मै चक्रवर्ती सम्राट बाने का योग है परन्तु वो एक साधारण जीवन ही व्यतीत कर रह है। फिर तांत्रिक को पता चला के चक्रवर्ती सम्राट थो एक ही हो सकता है इसिस्लिये विक्रम बनगया है । और तांत्रिक चक्रवर्ती सम्राट तभी बन सकता है जब बाकी दोनों लोगओ की मृत्यु होजाये। इसीलिए तांत्रिक ने ये योजना  बनाई के विक्रम के हाथो बेताल को उठवाकर वो तेल की कधी मै डलवा देगा  और बेताल बसम होजायेगा और विक्रम से देवी माँ के आगे नतमस्तक होकर प्रणाम करने के लिए कहेगा और तभी वो विक्रम की गर्दन काटकर उसे मृत्युलोक पहुचा देगा और फिर वो स्वयं ही चक्रवर्ती सम्राट बन जायेगा।
बेताल विक्रम के न्याय,कर्त्तव्यनिष्ठा, प्रजाप्रेम और वीरता से प्रभवित था।अपनी मृत्यु से पहेले , उसने उस दुष्ट तांत्रिक का प्रयोजन विक्रम को बता कर एक अच कर्म किया और  विक्रम सचेत होगया । बेताल को कढाई मै डालने के बाद जब तांत्रिक ने उससे माता के अगर झुकने को कहा..थो विक्रम ने बड़ी ही बुद्धिमानी से कहा के वो रजा है वो किसिस के आगे नहीं झुकता इसिस्लिये उसको पता ही नहीं के किस तरह से नतमस्तक हो कर झुकना होता है, इसीलिए उसने तांत्रिक से कहा के तुम मुझे उधाहरण दो । जैसे ही उद्धरण देने के लिए तांत्रिक नतमस्तक हु विक्रम ने उस तांत्रिक को मृतुलोग पहुचा दिया।  

बेताल पचीसी की आखिरी कहानी

" विक्रम और बेताल " की कहानियो की सारी श्रृखला देखने के बाद मुझे बहुत  हताशा हुई , क्युकी उसमे सिर्फ २४ कहानिया ही दिखाई गयी । बहुत उत्सुक था ये जानने के लिए के वो कहानी कौनसी है और उसमे बेताल ने विक्रम से कौनसा प्रशन पूछा होगा जिसका जवाब विक्रमादित्य जैसा तेजस्वी, न्यायप्रिय और बुद्धिमान भी नहीं दे सका ।
परन्तु हमारे मित्र आशुतोष शुकला जी , हिंदी साहित्य की कई कहानियो के ज्ञाता है । तो हमने उन्ही से अपनी विडम्बना कही, तो उन्हें जरा देर न लगाई हमारे मन मई चल रहे कोतुहल की । ये ही नहीं उन्होंने उस "बेताल पचीसी " मे होने वाले घटनाकर्म मे छिपे रहस्य को भी बताया। सो मैंने सोचा क्यूनाइसमें अपने ब्लॉग पैर ही लिख दिया जाये......
              

Thursday, March 15, 2012

VIKRAM AUR BETAAL

          Recently, downloaded "Vikram aur Beetal"   what a reminiscence ....
But what a great serial it is simple, sober with great short stories and wonderful witty qns which teaches love compassion,justice,bravery,being fearless, modesty, kindness, being selfless, importance of sacrifice  and list will go on...... a perfect serial for this fast moving world to take break and to learn what human is are...who are blindly following western business model...


          Somehow, while watching this serial something pop-out (a philosophy) which i am try to capitalize here:
-- Vikram and Betaal ... depicts three aspect of human society :






1. "The Vikram"Who are working honestly for  betterment of human race, setting up examples through their bravery, compassion for human race and knowledge a selfless one.
2. "The Betaal" Who are fearless,powerful, good by heart and deed but not accepted in society,becoz of their background or just don't want to part of society becoz of bad experiences.
3."The mendicant" Opportunist most cruel and meanest. Who took the advantage of both to rule the world. 

These stories tell about human behavior, give glimpse, about the mystery of life.These stories introduce you with sense of bravery, justice, compassion, respect, sense of justice and teaches you about principles and karma.

This event written by Maha kavi Somdatt as "Betaal Pachisi " is a precious gift to human society.